विधानसभा चुनाव – 2022 और शिवपाल की तैयारियां
-प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव-
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ संबंध सुधरने के बाद प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव के सामने 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर जो संशय की स्थिति थी, वह अब समाप्त हो गई है। इसकी घोषणा कई बार मीडियाकर्मियों से बात करते हुए अखिलेश यादव ने खुद भी स्वीकार की है । उन्होने कई सवालों का उत्तर देते हुए साफ-साफ कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के साथ चुनावी तालमेल होगा । साथ ही उन्होने शिवपाल सिंह यादव के लिए जसवंतनगर विधानसभा सीट छोड़ने, और उनके उम्मीदवारी की घोषणा भी कर दी है। शिवपाल सिंह और अखिलेश के बीच जो राजनीतिक दूरियाँ बनी थी, उसे समाप्त करने में समाजवादी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अहम भूमिका निभाई । इसमें यह तय हुआ कि समाजवादी पार्टी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का विलय नहीं होगा। दोनों अपने-अपने अस्तित्व को बरकरार रखेंगी और 2022 के विधानसभा चुनाव में आपसी तालमेल से प्रत्याशी खड़े करेंगी । यह सब होने के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति के माहिर शिवपाल सिंह यादव ने कई कदम उठाए और भविष्य में कई कदम उठाने जा रहे हैं। आज के इस लेख मे मैं उन्हीं बिन्दुओं पर चर्चा करूंगा, जो इस प्रकार हैं –
1. सामाजिक संगठनों के साथ करार समाप्त – सपा के साथ चुनावी तालमेल की घोषणा होने के बाद प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव ने पार्टी के गठन के समय जो संगठनों के साथ कुछ शर्तों के साथ तालमेल किया था, उसे समाप्त कर दिया है । या सिर्फ ऐसे संगठनों को ही अपने साथ रखा है, जो बिना शर्त उनके साथ रहने को तैयार हैं ।
2. संगठन पदाधिकारियों को सामाजिक संगठनों से दूरी बनाने की हिदायत – प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह ने एक लिखित निर्देश देकर साफ-साफ शब्दों में बता दिया कि अब कोई भी पार्टी का नेता सामाजिक संगठन और पार्टी संगठन में एक साथ पदाधिकारी नहीं रह सकता है। अगर वह किसी सामाजिक संगठन में पदाधिकारी है, और इस निर्देश के बाद भी बना रहता है, तो वह पार्टी के पद से स्वत: मुक्त माना जाएगा । उनके इस निर्देश के बाद पार्टी के पदाधिकारियों में एक सन्नाटा छा गया। कुछ लोगों ने कहा कि वे इस संबंध में शिवपाल सिंह यादव को मना लेंगे और यह आदेश वापस करा देंगे, लेकिन अभी तक यह संभव नहीं हो पाया। ऐसे लोगों से शिवपाल सिंह ने साफ-साफ शब्दों में मना कर दिया ।
3. सीटों का चयन – आगामी विधानसभा चुनाव में सपा के साथ तालमेल की अधिकृत घोषणा के बाद उत्तर प्रदेश की जमीनी राजनीति के माहिर शिवपाल सिंह ने ऐसी सीटों पर नजर दौड़ना शुरू किया, जहां पर उनकी स्थिति मजबूत है। उन सीटों की जमीनी हकीकत जानने के लिए उन्होने फोन और अपने विश्वस्त लोगों के द्वारा मुकम्मल जानकारी इकट्ठा की है।
4. प्रत्याशियों का चयन – प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव इन दिनों अपने मिलने आने वाले नेताओं का मन भी टटोल रहे हैं। एक ओर जहां वे संगठन मजबूत करने, जनता के बीच में जाने की बात करते हैं, वहीं यह भी चर्चा करते हैं कि अगर आपकी सीट प्रसपा को मिले, तो कौन नेता मजबूती के साथ चुनाव लड़ेगा और जीत दर्ज करेगा । इस प्रकार जिन नेताओं का वह नाम बताता है, उसे वे नोट कर लेते हैं और उसके बारे में जानकारी इकट्ठा करते हैं। शिवपाल सिंह यादव यह अच्छी तरह जानते हैं कि चुनाव लड़ने के लिए धन की जरूरत होती है, इसलिए वे इस बात पर अधिक ध्यान दे रहे हैं कि उनके किस नेता की आर्थिक स्थिति अच्छी है ।
5. तैयारी करने के निर्देश – जब मैं क्षेत्र में भ्रमण करता हूँ, वहाँ के लोग यह बताते हैं कि प्रसपा के अमुक नेता इन दिनों क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं और क्षेत्र में ऐसा कहते हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का तैयारी करने के निर्देश मिल गया है। आप लोग मजबूती देंगे, तो टिकट मिल जाएगा । लॉक डाउन के दौरान ऐसे नेताओं की सक्रियता दिखी भी । जब मैंने ऐसी सीटों का अध्ययन किया तो पाया कि इसके लिए वे दो बातों का ध्यान दे रहे हैं। एक उस नेता की क्षेत्रीय पकड़ और उपलब्धता । दूसरा उसकी आर्थिक स्थिति ।
6. संगठन का परिमार्जन – बदले राजनीतिक परिवेश के बाद संगठन के माहिर प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव ने एक बार फिर से संगठन के परिमार्जन पर ध्यान देना शुरू कर दिया है । अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं में से वे ऐसे लोगों की लिस्ट बना रहे हैं, जो क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहने के साथ-साथ पार्टी और उनके प्रति निष्ठावान हैं। अभी हाल में देखा गया कि कई जिलों के जिला अध्यक्ष और महासचिव पद उन्होने बदले और मिलने के लिए आए उन पदाधिकारियों से यह साफ-साफ कहा कि वे क्षेत्र में जाकर चुनावी माहौल तैयार करें ।
7. फोन चर्चा – समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जहां वाट्सएप से वीडियो कालिंग करके अपने कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर शिवपाल सिंह यादव अपने नजदीकी नेताओं से बातचीत कर रहे हैं । छोटे-छोटे पहलू पर विचार-विमर्श कर रहे हैं। अपने संगठन और पदाधिकारियों की सक्रियता की जानकारी ले रहे हैं । संगठन को कैसे मजबूती प्रदान की जाए, उस पर चर्चा कर रहे हैं।
8. चापलूस नेताओं से दूरी – कोरेना महामारी में एक बात और देखने को मिल रही है कि प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव ऐसे नेताओं से दूरी बना कर चल रहे हैं, जो लखनऊ में रह कर सिर्फ चापलूसी से अपनी राजनीति चमका रहे थे । और उनके कार्यालय पहुँचते ही केवल इधर की उधर किया करते थे। अगर वे सामने आ ही गए, तो उनसे वे चर्चा तो कर लेते हैं, लेकिन उनकी बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं। अगर उनकी कोई बात सही और अच्छी होती है, तो उसकी प्रामाणिकता की पुष्टि करते हैं और इसके बाद जाकर उस पर अमल करते हैं ।
9. विवादास्पद क्षेत्रों से दूरी - प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ऐसे कोई कदम उठाने के फ़ेवर में नहीं है, जिससे अखिलेश के साथ हुए मधुर संबंध में फिर से खटास उत्पन्न हो । इसमें सबसे अधिक सतर्कता वे समाजवादी पार्टी के प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर राम गोपाल यादव के वर्चस्व वाली सीटों को लेकर कर रहे हैं। अब वे प्रोफेसर राम गोपाल यादव के साथ किसी प्रकार की प्रतिस्पर्धा नहीं चाहते हैं, क्योंकि दोनों नेता यह जान चुके हैं कि प्रतिस्पर्धा से फायदा किसी का नहीं होता है, बल्कि दोनों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है ।
10. टीवी प्रवक्ता पैनल भंग – समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा आगामी विधानसभा चुनाव मे प्रसपा के साथ समझौते की घोषणा के बाद शिवपाल सिंह यादव ने सबसे पहले टीवी प्रवक्ता पैनल भंग किया। वे मीडिया को ऐसे मसलों पर विवादास्पद सवाल पूछने का मौका नहीं देना चाहते हैं । इस कारण उन्होने टीवी पैनल भंग कर दिया ।
11. समाज में फैली विभ्रांति दूर करने के निर्देश – सपा के साथ एकमत होने के बाद प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने अपने नेताओं को यह निर्देश दिया कि वे सपा के नेताओं के साथ मिल-जुल कर रहें। उनके साथ मधुर संबंध बनाएँ और जब भी क्षेत्र में जाएँ, इस बात की चर्चा जरूर करें, कि आगामी विधानसभा चुनाव सपा और प्रसपा मिल कर लड़ेंगी । जिससे विधानसभा चुनाव के समय उन्हें कोई बरगला न सके । कोई भी राजनीतिक दल हो, नेता कान का कच्चा होता है। और क्षेत्र की वस्तु स्थिति जानने के लिए उससे जो भी मिलने जाता है, उससे वे बातचीत जरूर करते हैं। पिछली सपा सरकार में शिवपाल सिंह और अखिलेश के पास कुछ ऐसे नेताओं का जमावड़ा हो गया, जो विश्वस्त होने के साथ दूसरे के विरोधी भी हो गए। कोई काम न होने या अड़चन होने पर इन दोनों नेताओं के समीपस्थ नेता दूसरे को दोषी ठहराते। धीरे-धीरे इन दोनों के नेताओं को यह विश्वास हो गया कि वे एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी हैं। और एक समय ऐसा आया, जब दोनों नेताओं का एक साथ रहना मुश्किल हो गया। एक परिवार के सदस्य होने के बाद भी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का गठन हुआ। लेकिन एक व्यक्ति ऐसा था, जो इन दोनों के अलगाव में समाजवादी पार्टी का पतन देख रहा था। वे थे मुलायम सिंह यादव । उनका लगातार यही प्रयास रहा कि दोनों एक हो जाएँ । अंत में दोनों नेता एक हुए । साथ ही दोनों पार्टियों में ऐसे नेताओं की भरमार रही, जो दिल चाहते थे कि एक बार फिर अखिलेश और शिवपाल एक हो जाएँ। उनकी शुभकामनाओ का भी असर है।
इन दोनों नेताओं के एक होने के बाद एक बार फिर समाजवादी पार्टी विपक्ष में और मजबूत हुई। जो लोग अलग होने की वजह से दूरी बना लिए थे, वे सिर्फ नजदीक नहीं आए, बल्कि खासे सक्रिय भी दिखाई दे रहे हैं। एक बात तो निश्चित है कि जैसे जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आएगा। दोनों के एकीकरण का प्रभाव सभी को देखने को मिलेगा । यह भी निश्चित है कि दोनों नेताओं के बीच मधुर संबंध होने के बाद चुनाव लड़ने में भी मजबूती दिखाई देगी। अगर शिवपाल सिंह और अखिलेश के बीच तालमेल सही रहा और चुनाव प्रबंधन ठीक से किया गया, तो परिणाम सकारात्मक हो सकते हैं ।
(लेखक पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट हैं)